रातें जोगन, दिन सन्यासी

रातें जोगन, दिन सन्यासी भर जाते हैं और उदासी   अपनों में, अपने ही घर में लगते हैं हम लोग प्रवासी   सारे सपने बिखरे-बिखरे ख़ुशियाँ सारी बासी-बासी   तम के चरण पखार रही है कैसी है ये पूरणमासी   किस के भय से चुप बैठे हैं डाल गले में हम सब फाँसी